Monday, October 7, 2019

मिर्गी का इलाज

मिर्गी

मिर्गी मिर्गी जिसे 'अपस्मार' भी कहा जाता है, लंबे समय से चलने वाला तंत्रिका संबंधी विकार है, जिसकी पहचान 'मिर्गी के दौरे' से की जाती है। ये दौरे वे घटनाएँ हैं, जो कि लगातार कंपन की संक्षिप्त और लगभग पता न लग पाने वाली घटनाओं से काफ़ी लंबी अवधि तक हो सकती हैं। ज्यादातर मामलों में कारण अज्ञात हैं, तथापि कुछ लोगों में मस्तिष्क की चोट, स्ट्रोक, मस्तिष्क कैंसर और नशीली दवाओं और शराब के दुरुपयोग और अन्य कारणों के परिणामस्वरूप मिर्गी विकसित होती है। मिर्गी में दौरे बार-बार पड़ते हैं और उनका कोई तत्काल अंतर्निहित कारण नहीं होता, जबकि ऐसे दौरे जो किसी एक विशेष कारण से होते हैं, उन्हें मिर्गी का प्रतीक होना नहीं माना जाता है। मिर्गी की पुष्टि अक्सर एक 'इलैक्ट्रोएनस्फैलोग्राम'[1] के साथ की जा सकती है। रोग के लक्षण - सामान्य भाषा में मिर्गी को 'मूर्च्छा' या 'दौरा' कहते हैं। मिर्गी रोग से पीड़ित व्यक्ति को दौरा पड़ने से पहले उसके रंग में परिवर्तन होने लगता है तथा उसे कानों में अजीब-अजीब-सी आवाजें सुनाई देने लगती हैं और रोगी को लगता है कि उसकी त्वचा पर या उसके नीचे बहुत से कीड़े रेंग रहे हैं। मिर्गी रोग में मस्तिष्क इस अवस्था को 'पूर्वाभास' कहते हैं। ग्रांड माल दौरे की अवस्था में रोगी ज़ोर से चीखता है और शरीर में खिंचाव होने लगता है तथा रोगी के हाथ-पैर अकड़ने लगते हैं और फिर रोगी बेहोश होकर ज़मीन पर गिर पड़ता है तथा अपने हाथ-पैर इधर-उधर फेंकने लगता है। रोगी व्यक्ति अपने शरीर को धनुष के आकार में तान लेता है और अपने सिर को एक तरफ लटका लेता है। इसके साथ-साथ वह अपने हाथ-पैरों में जोर-जोर से झटके मारता है तथा हाथ तथा पैर मुड़ जाते हैं, गर्दन टेढ़ी हो जाती है, आंखे फटी-फटी हो जाती है, पलकें स्थिर हो जाती हैं तथा उसके मुंह से झाग निकलने लगता है। मिर्गी का दौरा पड़ने पर कभी-कभी तो रोगी की जीभ भी बाहर निकल जाती है, जिसके कारण रोगी के दांतों से उसकी जीभ के कटने का डर भी लगा रहता है। मिर्गी के दौरे के समय में रोगी का पेशाब और मल भी निकल जाता है। इस क्रिया के बाद उसका शरीर ढीला पड़ जाता है तथा कुछ समय बाद रोगी को फिर से वैसे ही अगला दौरा पड़ने लगता है। इसके बाद में रोगी होश में आ जाता है। जब रोगी का दौरा समाप्त हो जाता है तो उसे अपने शरीर में बहुत कमज़ोरी महसूस होती है तथा उसका चेहरा नीला पड़ जाता है और उसके बाद रोगी को बहुत गहरी नींद आ जाती है। दौरा पड़ने के बाद रोगी बेहोश हो जाता है तथा इसके कुछ घंटे बाद रोगी को बेहतर अनुभव होने लगता है, लेकिन दौरे का असर एक हफ्ते तक रह सकता है। मिर्गी रोग के निम्नलिखित प्रमुख कारण हैं - मिर्गी रोग होने का वैसे तो कोई प्रत्यक्ष कारण नहीं दिखाई पड़ता है, लेकिन बहुत सारे वैज्ञानिकों का मानना है कि यह रोग होने का प्रमुख कारण मस्तिष्क का काई भाग क्षतिग्रस्त हो जाना है, जिसकी वजह से यह रोग हो जाता है। आमतौर पर मिर्गी का रोग अधिकतर पैतृक (वंशानुगत/अनुवांशिक) होता है। इसका कारण रोगी के माता-पिता का फिरंग रोग या उपदंश रोग से पीड़ित होना या अधिक मात्रा में शराब पीने जैसे कारणों से बच्चों को हो जाता है। इस रोग के होने के और भी कई कारण हैं, जैसे- लिंगमुण्ड की कठोरता, अपच की उग्र अवस्था, कब्ज की समस्या होने, पेट या आंतों में कीड़े होने, नाक में किसी प्रकार की ख़राबी, आंखों के रोग या मानसिक उत्तेजना, स्त्रियों के मासिकधर्म सम्बन्धित रोगों के कारण आदि। मिर्गी रोग होने के और भी कई कारण हो सकते हैं, जैसे- बिजली का झटका लगना, नशीली दवाओं का अधिक सेवन करना, किसी प्रकार से सिर में तेज चोट लगना, तेज बुखार तथा एस्फीक्सिया जैसे रोग का होना आदि। इस रोग के होने का एक अन्य कारण स्नायु सम्बंधी रोग, ब्रेन ट्यूमर, संक्रमक ज्वर भी है। वैसे यह कारण बहुत कम ही देखने को मिलता है। भागदौड़ भरी ज़िंदगी में इस बीमारी के कई कारण हो सकते हैं। ज़रूरत से ज़्यादा तनाव, नींद पूरी न होना और शारीरिक क्षमता से अधिक मानसिक व शारीरिक काम करने के कारण किसी को भी मिर्गी की परेशानी हो सकती है। मिर्गी रोग कई प्रकार के ग़लत तरह के खान-पान के कारण भी होता है, जिसके कारण रोगी के शरीर में विषैले पदार्थ जमा होने लगते हैं, मस्तिष्क के कोषों पर दबाब बनना शुरू हो जाता है और रोगी को मिर्गी का रोग हो जाता है। अत्यधिक नशीले पदार्थों, जैसे- तम्बाकू, शराब का सेवन या अन्य नशीली चीजों का सेवन करने के कारण मस्तिष्क पर दबाव पड़ता है और व्यक्ति को मिर्गी का रोग हो जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार सूअरों की आंतों में पाए जाने वाले फीताकृमि (टेपवर्म) के संक्रमण की वजह से भी मिर्गी का रोग हो सकता है। सूअर खुली जगह में मल त्याग करते हैं, जिसकी वजह से ये कीड़े साग-सब्जियों के द्वारा घरों में पहुँच जाते हैं। टेपवर्म का 'सिस्ट' यदि मस्तिष्क में पहुँच जाए तो उसके क्रियाकलापों को प्रभावित कर सकता है, जिससे मिर्गी की आशंका बढ़ जाती है। मिर्गी रोग में उपचार - मिर्गी रोग साध्य है, बशर्ते इसका उपचार सही ढंग से कराया जाए। रोग के लक्षण दिखते ही न्यूरोलॉजिस्ट की राय लें। इसके इलाज में धैर्य बहुत ज़रूरी होता है। मिर्गी रोगी का इलाज 3 से 5 वर्ष तक चल सकता है। सामान्य तौर पर इस रोग के लिए 15-20 दवाइयां मौजूद हैं। डॉक्टर मरीज़ की ज़रूरतों के अनुसार इन दवाइयों का प्रयोग करते हैं। यदि एक दवाई का मरीज़ पर असर नहीं होता, तो डॉक्टर बाकी दवाइयों से उपचार करते हैं। मरीज़ पर ये दवाइयां असर करनी शुरू कर दें, तो रोग पर काबू पाया जा सकता है। किसी भी दवाई के कारगर न होने पर डॉक्टर सर्जरी की सलाह दे सकते हैं।

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