Monday, October 7, 2019

स्लिप डिस्क: इससे बचने के आसान उपाय

स्लिप डिस्क: इससे बचने के आसान उपाय

स्लिप डिस्क: इससे बचने के आसान उपाय आधुनिक काल में जहां हर क्षेत्र में मानव ने प्रगति करी है और सफलता की ऊंचाइयां छुई हैं वहीं बीमारियों का शिकार होने में भी बहुत आगे हो गया है ।अगर आज के समय में बीमारियों की बात पर आयें जाए तो ऐसे अनेक रोग हैं जिन्होंने इस भागती दौड़ती जिंदगी में हमारे शरीर में न जाने क्या क्या उपद्रव मचा दिए हैं। आज लगभग हर व्यक्ति को अपने जीवन में कमर दर्द का अनुभव होता है। धीरे धीरे कमर दर्द भी एक बहुत बड़ी कष्टदायक समस्या बनी हुई है और अब ये दुनिया में एक महामारी के रूप में जानी जाने लगी है। आज हर उम्र के लोग इससे परेशान हैं और दुनिया भर में इसके आसान इलाज की खोज जारी है। यह गंभीर दर्द कई बार स्लिप डिस्क में बदलता है तो कभी-कभी इससे साइटिका भी हो सकता है। आम कारण 1. गलत ढंग से बैठना और दैनिक कामकाज करना इसके प्रमुख कारण हैं। लेट कर या झुक कर पढना या काम करना, कंप्यूटर के आगे बैठे रहना इसका कारण है। 2. वजन उठाने, अनियमित दिनचर्या, झटका लगने, अचानक झुकने, गलत तरीके से उठने-बैठने की वजह से दर्द हो सकता है। 3. सुस्त जीवनशैली, शारीरिक गतिविधियां कम होने, व्यायाम या पैदल न चलने से भी मसल्स कमजोर हो जाती हैं। बहुत ज़्यादा थकान से भी रीढ़ की हड्डी पर जोर पडता है और एक लिमिट के बाद यह समस्या शुरू हो जाती है। 4. बहुत ज़्यादा शारीरिक मेहनत, गिरने, फिसलने, दुर्घटना में चोट लगने, देर तक ड्राइविंग करने से भी डिस्क पर प्रभाव पड सकता है। 5. उम्र बढने के साथ-साथ हड्डियां कमजोर होने लगती हैं और इससे डिस्क पर जोर पडने लगता है। किस उम्र में खतरा ज़्यादा होता है- 1. आमतौर पर 30 से 50 वर्ष की उम्र में कमर के निचले हिस्से में स्लिप्ड डिस्क की समस्या हो सकती है। 2. 40 से 60 वर्ष की आयु तक गर्दन के पास सर्वाइकल वर्टिब्रा में समस्या होती है। 3. विशेषज्ञों के अनुसार अब 20-25 वर्ष के युवाओं में भी स्लिप डिस्क के लक्षण तेजी से देखे जा रहे हैं। देर तक बैठ कर कार्य करने के अलावा स्पीड में बाइक चलाने या सीट बेल्ट बांधे बिना ड्राइविंग करने से भी यह समस्या बढ रही है। अचानक ब्रेक लगाने से शरीर को झटका लगता है और डिस्क को नुक्सान हो सकता है। सामान्य लक्षण 1. नसों पर दबाव के कारण कमर दर्द, पैरों में दर्द या पैरों, एडी या पैर की अंगुलियों का सुन्न होना 2. पैर के अंगूठे या पंजे में कमजोरी 3. स्पाइनल कॉर्ड के बीच में दबाव पडने से कई बार हिप या थाईज के आसपास सुन्न महसूस करना 4. समस्या बढने पर यूरिन-स्टूल पास करने में परेशानी 5. रीढ के निचले हिस्से में असहनीय दर्द 6. चलने-फिरने, झुकने या सामान्य काम करने में भी दर्द का अनुभव। झुकने या खांसने पर शरीर में करंट सा अनुभव होना। जांच और उपचार herniated_discदर्द लगातार बम रहना, एक्स-रे या एमआरआइ, लक्षणों और शारीरिक जांच से डॉक्टर को पता चलता है कि कमर या पीठ दर्द का सही कारण क्या है और क्या यह स्लिप्ड डिस्क है।जांच के दौरान स्पॉन्डलाइटिस, डिजेनरेशन, ट्यूमर, मेटास्टेज जैसे लक्षण भी पता लग सकते हैं। कई बार एक्स-रे से भी सही कारणों का पता नहीं चल पाता। इस अवस्था में सीटी स्कैन, एमआरआइ या माइलोग्राफी (स्पाइनल कॉर्ड कैनाल में एक इंजेक्शन के जरिये) से सही-सही स्थिति का पता लगाया जा सकता है। इससे पता लग सकता है कि यह किस तरह का दर्द है। यहाँ ध्यान देने वाली बात है कि डॉक्टर ही बता सकता है कि मरीज को किस जांच की आवश्यकता है। स्लिप्ड डिस्क के ज्यादातर मरीजों को आराम करने और फिजियोथेरेपी से राहत मिल जाती है। फिजियोथेरेपी भी दर्द कम होने के बाद ही कराई जाती है। इसमें दो से तीन हफ्ते तक पूरा आराम करना चाहिए। दर्द कम करने के लिए डॉक्टर की सलाह पर दर्द-निवारक दवाएं, मांसपेशियों को आराम पहुंचाने वाली दवाएं या कभी-कभी स्टेरॉयड्स भी दिए जाते हैं। अधिकतर मामलों में सर्जरी के बिना भी समस्या हल हो जाती है। संक्षेप में इलाज की प्रक्रिया इस तरह है- 1. दर्द-निवारक दवाओं के माध्यम से रोगी को आराम पहुंचाना 2. कम से कम दो से तीन हफ्ते का बेड रेस्ट 3. दर्द कम होने के बाद फिजियोथेरेपी या कीरोप्रैक्टिक ट्रीटमेंट 4. कुछ मामलों में स्टेरॉयड्स के जरिये आराम पहुंचाने की कोशिश 5. परंपरागत तरीकों से आराम न पहुंचे तो सर्जरी ही एकमात्र विकल्प है। लेकिन सर्जरी होगी या नहीं, यह निर्णय पूरी तरह विशेषज्ञ का होता है। ऑर्थोपेडिक्स और न्यूरो विभाग के विशेषज्ञ जांच के बाद सर्जरी का निर्णय लेते हैं। यह निर्णय तब लिया जाता है, जब स्पाइनल कॉर्ड पर दबाव बढने लगे और मरीज का दर्द इतना बढ जाए कि उसे चलने, खडे होने, बैठने या अन्य सामान्य कार्य करने में असह्य परेशानी का सामना करने पडे। ऐसी स्थिति को इमरजेंसी माना जाता है और ऐसे में पेशेंट को तुरंत अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत होती है, क्योंकि इसके बाद जरा सी भी देरी पक्षाघात का कारण बन सकती है।

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